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'टैटू' आर्ट का बढ़ता क्रेज़

आधुनिक दौर में युवाओं का एक बड़ा वर्ग टैटू के फैशन की ओर बढ़ रहा है। युवाओं के साथ-साथ बच्चों में भी टैटू के क्रेज़ देखे जा रहे हैं। इस नए दौर में तरह-तरह के डिजाइन वाले टैटू का चलन लोगों पर हावी हो गया हैं। इस टैटू पेंटिंग को एक आर्ट (कला) भी कहा जाता है, जिसे बॉडी पर बनवाते हैं। 

इस टैटू का फैशन भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बड़े पैमाने पर देखने को मिलता है। विदेशों में तो पुरुषों के मुकाबले टैटू का फैशन महिलाओं में कहीं ज्यादा देखा गया है, जहां पुरुष अपनी पूरी बॉडी पर टैटू बनवाते हैं, वहीं महिलाओं ने भी टैटू के फैशन में कोई कसर नहीं छोड़ा है। विदेशी महिलाएं भी अपनी बॉडी के हर एक पार्ट पर टैटू बनवा रखी हैं, जिसे दिखाया भी नहीं जा सकता है। 

वैसे तो यह टैटू फैशन के श्रेणी में आ गया है, लेकिन आपको बता दूं कि, अमेरिका में टैटू करवाने से कहीं ज्यादा टैटू निकलवाने का बिजनेस बन गया है। ज्यादातर लोगों ने यह बताया कि टैटू करवाने से कुछ सालों या महीनों में ही उसका साइड इफेक्ट बॉडी पर दिखने लगता है या फिर कुछ ऐसे लोग होते हैं जो अपने महबूब के नाम का टैटू बनवा लिए रहते हैं और फिर अलग होने पर उस टैटू को निकलवाते हैं। 

क्या आपने कभी सोचा है, कि यह टैटू का फैशन आखिर आया कहां से है। अभी के आधुनिक दौर में देखा जाए तो यह टैटू का क्रेज भी फैशन के साथ पश्चिमी देशों से आया है। लेकिन इतिहास खंगाला जाए तो पता चलता है कि इसका प्रचलन और फैशन काफी पुराना है। प्राचीन काल के समय से ही टैटू का चलन रहा है। 

सबसे पहले आदिवासी समूहों में ही टैटू का चिन्ह देखा गया था। अलग-अलग जनजाति के लोग  अलग-अलग टैटू बनवा कर अपना पहचान बताते थे। जिसे हिंदी भारतीय भाषा में गोदना गोदवाना भी कहा जाता है। इससे यह जाना जाता था कि कौन से टैटू वाले कौन से जनजाति समूह के हैं। 

यह टैटू संस्कृति आज भी देशों के कई क्षेत्रों में देखने को मिलते हैं। यह खासकर आदिवासियों के क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय है। वहां की महिलाएं अपने हाथों से बनाए गए नीडल(सुई) से टैटू बनाती हैं। इसे उनका रीति रिवाज कहो या फिर संस्कृति का हिस्सा। 

भारत देश की बात करें तो यहां अनेकों प्रकार के जनजाति वर्गों का समूह है। जिनके बॉडी पर तरह-तरह की डिजाइन वाले गोदना (टैटू) देखने को मिलते हैं। यहां ज्यादातर छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे कई ऐसे राज्य हैं, जहां आदिवासी आज भी इस टैटू के चलन को अपनाए हुए हैं। यह उनकी संस्कृति का एक हिस्सा बन गया है। 

ऐसा कहा जाता है कि पहले आदिवासी महिलाओं का यौन शोषण राजा द्वारा किया जाता था। राजा पहले जनजातीय समूहों की लड़कियों को उठा ले जाता था और उसका शोषण कर उन पर टैटू बनवा देता था, ताकि यह पता चल सके कि इस लड़की का शोषण हो चुका है। इसे देखते हुए आदिवासी महिलाओं ने अपने पूरे शरीर पर टैटू बनवाना शुरू कर दिया तब से यह उनकी संस्कृति या रीति रिवाज बन गई है। 

आज भी आदिवासी क्षेत्रों में 12 से 13 साल की लड़कियों को टैटू बनवाना अनिवार्य है। उनका कहना है कि यही उनका श्रृंगार और उनकी रीती रिवाज है। महिलाएं पहले माथे से टैटू बनवाना शुरू कर देती हैं। फिर धीरे-धीरे बढ़ती उम्र के साथ- साथ ब्लाउज के जैसे कई तरह की डिजाइनों में अपनी छाती और पीठ पर भी टैटू बनवा लेती हैं। 

आदिवासियों के इस टैटू परंपरा को आधुनिक दौर में लोगों ने एक फैशन में बदल दिया है।
अब तो लोग इस टैटू को अपने शौक, प्यार का इजहार, स्वतंत्रता, सुरक्षा और स्वयं को चिन्हित कराने के लिए भी बनवाने लगे हैं। 


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