नए साल 2021 के लिए दुनिया भर के लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। लोगों में नए साल की नई उम्मीदें और आशाएं हैं। 2020 बहुतों के लिए काफी पनौती रहा है, खासकर जनवरी माह से सितंबर माह तक। एक तरह से देखा जाए तो 2020 ने मानवों की आंखें खोल दी है। जो अंधाधुंध प्रकृति से खिलवाड़ किए जा रहे थे। सिर्फ एक वायरस ने प्रत्येक व्यक्ति को जल और वायु की अहमियत बता दी। इस कठिन समय को झेलने के बाद अब सभी साफ ऑक्सीजन के लिए पेड़ - पौधे और साफ पानी के लिए जल परियोजनाओं के कार्यों में ध्यान देने लगे अर्थात् स्वच्छ और स्वास्थ्य की ओर।
सृष्टि ने जब अचानक ही अपना रुख बदला तो संसार के सभी जीवों पर इसका असर देखने को मिला। 2020 की प्रत्येक घटनाएं अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। जहां लोग गिरते संभलते हुए 2020 के अंत तक पहुंचे वो आजीवन इस 2020 को नहीं भुला सकते। इस साल कोरोना वायरस के अलावा भी कई मुसीबतों और लोगों के संघर्षों को देखा गया है।
यदि भारत की बात की जाए तो भारत के बाहर और अंदर कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। भारतीय लोगों में हिम्मत बहुत है। भारतीय इस कोरोना काल को एक मुसीबत नहीं बल्कि संघर्ष की तरह गुजारा है। वहीं इस साल के अंत तक काफी सुधार देखने को मिला। लोग अपने-अपने कार्यों में जाने लगे यानी पहले की तरह सब आम हो गया।
भारतीय शादियों का सीज़न
इतना सब कुछ आम हो जाने के बाद, बात आती है भारतीय शादियों की। आप सभी को एक खास बात बताऊं तो भारत में दीवाली पर्व के बाद से शादी का सीजन शुरू हो जाता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार यह शादी का सीजन दिसंबर माह से मई जून के महीने तक चलता है। इन महीनों में कई नए जोड़े अपने नए जीवन में एक साथ कदम रखते हैं। जहां 2020 की शुरुआत पनौती रही वहीं इसका अंत थोड़ा ठीक रहा।
भारतीय शादियों की प्रथा
भारत में विभिन्न प्रकार की संस्कृतियां हैं। भारतीय शादी इन्हीं संस्कृतियों में की जाती है। भारत में जो भी परिवार जिस भी धर्म, जाति का हो। वह अपनी संस्कृतियों के अनुसार ही शादी करते हैं। भारतीय शादियां कोई एक दिन की नहीं होती बल्कि शादी की तैयारियों से लेकर शादी तक 1-2 महीने लग जाते हैं। शादियों का एक-एक दिन यादगार होता है। इसमें बैंड -बाजा कई तरह की रस्में, खाना- पीना सब कुछ शामिल होता है।
लेकिन जब बात लड़कियों की आती है तो भारतीय शादियों में लड़कियों को अपने नए घर में प्रवेश करने से पहले उसे 'दहेज प्रथा' की रस्मों से होकर गुजरना पड़ता है।
भारत में दहेज प्रथा का अंत सिर्फ संविधान और कानून तक ही किया गया है। उसे वास्तव में अब तक समाज से नहीं हटाया गया। आज भी कई लोगों को अपनी बेटी की शादी कराने के लिए कई लाखों रुपयों का सौदा करना पड़ता है।
लेकिन वहीं इस रूढ़िवादी दहेज प्रथा को पीछे छोड़ते हुए भारत के छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर का एक परिवार ऐसा भी है जो प्रकृति को ध्यान में रखते हुए लड़की वालों से दहेज में रुपयों के बदले 35 पौधे मांगे।
ऐसे नवजवान और समझदार युवाओं की इस देश को जरूरत है जो पैसों से नहीं बल्कि जिंदगी से प्यार करते हैं। यह महतो परिवार है जिन्होंने कहा कि पौधों से बड़ा और कोई दहेज नहीं हो सकता। सामान खराब हो जाएंगे और पैसे खत्म हो जाएंगे लेकिन यह पौधे ही हैं जो हर दिन बड़े होते जाएंगे। इनसे ताजी हवा मिलेगी। पौधे जिंदगी के सबसे अहम हिस्सा होते हैं। ऐसे में दहेज में पौधों का स्थान जरूरी है।
यहां तक कि अपनी इनविटेशन कार्ड में भी उन्होंने यह लिखवाया था कि कृपया गिफ्ट लेकर ना आए बल्कि गिफ्ट की जगह किताबें भेंट करें। इस कारण इनकी शादी में सैकड़ों पुस्तके जमा हुई थी। जिन्हें बाद में जरूरतमंद लोगों में बांट दिए गए थे। यह एक छोटा सा उदाहरण था भारतीय संस्कृति के इस दहेज प्रथा को रोकने का।
निष्कर्ष - यदि भारत का प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह लड़का पक्ष का हो या लड़की, दहेज लेने और देने के बजाय इसी तरह पौधे और किताबें लेने देने में यकीन रखें तो हमारा समाज स्वच्छ वातावरण के साथ समझदार भी होगा। किताबें पढ़कर मन और दिमाग दोनों साफ होंगे। ऐसे में भारत का प्रत्येक व्यक्ति स्वच्छ और स्वस्थ होगा।
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