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The History of prostitution: जानिए कब और कैसे हुई वैश्यावृति की शुरुआत? जानकर कांप जाएगी आपकी भी रूह....


दुनिया भर में कई तरह के कारोबार किए जाते हैं। कुछ कारोबारियों को कई जगहों पर कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त होती भी है और नहीं भी। जो कारोबार गैरकानूनी ढंग से चलाए जाते हैं जिसे पूर्ण रूप से कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होती। वह कारोबार अवैध कारोबार कहलाता है। अवैध कारोबार में से हम बात करते हैं जिस्म कारोबार का। जिसका चलन आज के आधुनिक समय में बेशुमार हो गया है।

देह व्यापार(जिस्म कारोबार) को आज के समय अनुसार देखा जाए तो यह कई वेश्याओं का रोजगार है। साथ ही साथ बलात्कार जैसे बढ़ते मामलों पर थोड़ा विराम लगाया जा सकता है। यह वेश्यावृत्तियों का व्यापार दुनिया भर में कानूनी और गैरकानूनी ढंग से चलाया जाता है।

किस शासन काल से शुरुआत हुई जिस्मफोरोशी का कारोबार

भारत देश की बात की जाए तो देह व्यापार कई दशकों से चलता आ रहा है। इसे यहां कुछ ही जगह पर वैध माना गया है, बाकी देशभर में इसे गैरकानूनी ढंग से चलाया जा रहा है। इस व्यापार के इतिहास की बात की जाए तो यह व्यापार तब से भारत देश में चल रहा है जब भारत में अंग्रेजों का शासन चलता था। देखा जाए तो इस व्यापार का चलन मुगलों के जमानों से चला आ रहा है किंतु अंग्रेजों के शासनकाल से जिस्मफरोशी के कारोबार का बहुतायत रूप से विस्तार हुआ। इसीलिए इस कारोबार की शुरुआत अंग्रेजों के शासनकाल से माना जाना गलत नहीं होगा।

जाने कैसे शुरुआत हुई 'भारत' देश में वेश्यावृत्ति का कारोबार

जैसे कि आप सभी जानते हैं जब भारत पर अंग्रेजों का नियंत्रण था। तब एक समय भारतवासी अंग्रेजों के गुलाम हुआ करते थे और अंग्रेजों द्वारा भारत के कई क्षेत्रों में वेश्यावृत्ति के लिए वेश्यालय खोले गए थे। उस वक्त भारत में कई देशों का आवागमन हुआ करता था। दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, पूर्वी यूरोप, कोलंबो, हॉन्गकोंग, सिंगापुर, शंघाई, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, रोमानिया, रूस, इटली और यहूदी जैसे कई अन्य देश थे जिनका भारत देश में एक नोड था।

भारत के वेश्यालय में काम करने वाली है सेक्स वर्कर्स खासकर पूर्वी यूरोप से भारत के शहरों में आ बसे। बड़ी संख्या में ब्रिटिश  नाविकों, सैनिकों और प्रशासकों ने शहर के यूरोपीय देह व्यापार के लिए एक ग्राहक आधार का गठन किया। 1885 में जब ब्रिटेन में वेश्यालयों पर प्रतिबंध लगाया गया। तब आप औपनिवेशिक सरकार ने उन्हें भारत में शरण दिया क्योंकि यह ब्रिटिश सैनिकों और नाविकों के लिए यौन मनोरंजन को एक अनिवार्यता के रूप में देखती थी। जैसे जैसे भारत के शहर का दौरा करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई। तब से दौरा करने वालों को निर्देशित करने के लिए एक संगठित प्रणाली का उदय हुआ। और यह व्यवस्था 1920 के दशक में भी चलता रहा। जो भी शहर के दौरे के लिए आता था उसे सीधे वेश्यालय ले जाया जाता था। उस समय इस देह व्यापार का केंद्र बिंदु मुंबई और कोलकाता में स्थित था और आज देशभर में इस व्यापार का चलन हो गया।

भारत के प्रसिद्ध वेशालय की शुरुआत

जैसे कि आप सभी जानते हैं कि भारत में कई जगहों पर वेश्यावृति का कारोबार चलाया जाता है। जिनमें प्रमुख नाम कोलकाता का सोनागाछी और महाराष्ट्र मुंबई का कमाठीपुरा है। भारत देश का यह प्रमुख दो नामचीन वैश्यालय हैं। इस क्षेत्र के बारे में लोग जानने और सुनने के लिए इस क्षेत्र का भ्रमण भी करते हैं। 

मुंबई की बात की जाए तो वहां स्थित कमाठीपुरा का वेश्यालय तब से शुरू हुआ जब कमाठीपुरा में सड़कों का निर्माण 1803 में किया गया था। लेकिन वहां पक्की सड़कों का प्रमुख निर्माण 1860 के दशक में शुरू हुआ था। 19वीं शताब्दी के शुरुआत में कारीगरों और निर्माण श्रमिकों द्वारा कामथियों को बुलाया गया था।  1860 के दशक में वहां के नगर पालिका आयुक्त आर्थर क्राफर्ड ने स्पष्ट रूप से नगरपालिका के सफाई कर्मियों को वहां रहने का निर्देश दिया था।

1864 की जनगणना से यह स्पष्ट है कि उस समय तक यूरोपीय महिलाएं कमाठीपुरा में बस गई थी। इस क्षेत्र में कोलंबिया 408 महिलाओं के बाद शहर में दूसरी सबसे बड़ी यूरोपीय आबादी 224 महिलाएं थी। कमाठीपुरा में बड़ी संख्या में यूरोपीय महिलाओं को वहां स्थापित वेश्यालयों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। 

कमाठीपुरा की शुरुआती वहां के निवासियों, कारीगरों, सफाई कर्मियों और निर्माण श्रमिकों की निम्न जातियों ने वैश्यालय के सेक्स वर्करों को पट्टे पर देना सस्ता कर दिया था। उस वजह से सेक्स वर्करों की संख्या में वृद्धि होती गई। वहां एक वेश्यालय की जमींदार ने वहां के लोगों को समझाया की सफाई कर्मी अव्यवस्थित ढंग जीवन जीते हैं और कोई भी सम्मानित व्यक्ति वहां नहीं रहेगा। ऐसे में कमाठीपुरा आमतौर पर वेश्याओं का क्वार्टर देने के लिए प्रचलित था।

इसी तरह से भारत में वाराणसी, दिल्ली,  नागपुर, कोलकाता, जैसे अन्य क्षेत्रों में वैश्यालय की शुरुआत अंग्रेजों के शासनकाल से हुई। 

वेश्याओं का जीवनकाल

महिलाओं को आज भी किसी ना किसी वजह से बहुत कुछ झेलना पड़ता है। खासकर इस देह व्यापार की कामों में।  इस देह व्यापार की बात की जाए तो, जो (सेक्स वर्कर) होती हैं वह स्वयं को इस अंधकार कोठरी में नहीं रखना चाहती, या तो उन्हें कोई बेच देता है या जबरदस्ती इस काम को करने के लिए मजबूर किया जाता है। इसमें उम्र को नहीं देखा जाता है। 10-12 साल की बच्चियों से लेकर अधिकतम वर्ष 55 बुजुर्ग महिलाओं तक इस काम में धकेली जाती हैं। 

ऐसे कई रिपोर्ट आएं है जिसमें सेक्स वर्कर्स ने खुद अपना दुख बयां किया है। सेक्स वर्कर्स के दर्द को देखना और सुनना सभी चाहते हैं लेकिन उन्हें समझना कोई नहीं चाहता और ना ही कोई उनकी मदद करता है। ऐसे मामलों में यह कहावत सत्य ही है कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है। क्योंकि इस काम में अधिकतम औरतें ही भागीदारी होती है। यदि कोई वहां काम नहीं करना चाहता तो उसे वहां की औरतें ही बंधक बनाकर रखती हैं और उनसे जबरियां काम करवाती हैं पैसे वसूलने के लिए। 

कुछ सेक्स वर्कर्स का कहना है कि अपने और अपने बच्चों के लिए उनको ऐसा काम करना पड़ता है।
जैसे लोग सवाल उठाते हैं कि क्यों करती है यह महिलाएं ऐसा काम? कोई और काम क्यों नहीं करतीं? क्यों नहीं लड़कर बाहर आती हैं? कुछ लोग तो ऐसी महिलाओं पर अपशब्द टिप्पणियां करते हैं।
ऐसे सवालों का जवाब उन सेक्स वर्करों के पास होता है लेकिन वो कितनों को जवाब देती रहेंगी। 

तो इनका कहना है कि जो इस काम से तंग आ चुकी है। जिनको इस काम को जबरन करना पड़ रहा है। यदि वे इस काम को छोड़कर बाहर समाज के बीच रहना चाहती हैं और काम करना चाहती हैं तो समाज उन्हें नहीं अपनाता है। उल्टा समाज इन महिलाओं को घृणित नजर से देखता है और कुछ तो अपना शिकार बनाने का प्रयास भी करते हैं।  

ऐसे में वेश्यालय में काम कर रही महिलाएं समाज के बीच नहीं रह सकती। उन्हें उनके रोजगार की नजर से नहीं देखा जाता। जो महिलाएं स्वयं इस क्षेत्र में आती हैं। उनके साथ भी दुर्व्यवहार किया जाता है और उन पर भी अपशब्द टिप्पणियां की जाती है। समाज का खासकर पुरुष वर्ग महिलाओं पर कई तरह की टिप्पणियां करता है किंतु उन्हें अपना नहीं सकता। 

क्या देश में सेक्स वर्कर्स को कानूनी मान्यता प्राप्त होनी चाहिए?

हां। हां देश में सेक्स वर्कर्स को भी एक सम्मानजनक रूप में समाज के बीच जगह मिलनी चाहिए। एक महिला को भी सभी तरह के रोजगार का हक होना चाहिए। सरकार को वेश्यावृत्ति के काम को वैध करना चाहिए। कहा जाता है कि कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता सब को अपने ढंग से काम करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। बशर्ते कि उनके किसी भी काम से किसी अन्य व्यक्ति का ठेस न पहुंचे। खास कर इस क्षेत्र में महिलाओं को इच्छानुसार काम करने दिया जाना चाहिए न की बलपूर्वक उनसे काम कराने चाहिए।

रिपोर्ट 

महिला और बाल विकास के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 30 लाख से ज्यादा महिलाएं देह व्यापार में है और इसमें 36 लाख से ज्यादा महिलाएं ऐसी हैं जो 18 साल से भी कम उम्र से इस देह व्यापार में शामिल हो गई हैं।

ह्यूमन राइट्स के रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग दो करोड़ से ज्यादा महिलाएं इस काम में शामिल हैं और यह आंकड़े आए दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। 


मेरे विचार 
जो महिलाएं स्वयं से यह काम करती हैं उन्हें इस काम के लिए घृणित नजर से नहीं देखना चाहिए। उनके इस काम को करने से कई मासूम बच्चियां, लड़कियां या महिलाएं बलात्कार जैसे घृणित आपत्तिजनक अपराध की शिकार से बच सकती हैं। ऐसा कहा और सुना जाता है कि जहां-जहां यह वेश्यालय खोला गया है उस क्षेत्र में बलात्कार जैसे जघन्य अपराध कम देखने को मिलते हैं। एक पुरुष अपनी वासना को वेश्यालय जाकर कम कर सकता है लेकिन वेश्यालय ना हो तो पुरुषों को हैवान बनने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसे में बलात्कार के मामले रोजाना एक्सीडेंट होने के जैसे आए दिन बढ़ते ही जाएंगे। सेक्स वर्कर्स कई पुरुषों के वासनाओं को कम करती हैं। और इस काम के लिए उन्हें अपने परिवार को चलाने के लिए पैसे मिलते हैं। यह भी एक तरह से उनका रोजगार है, बावजूद इसके समाज इन महिलाओं को घृणित नजर से देखता है।

सरकार को इसे कानूनी रूप से मान्यता देनी चाहिए। कई तरह के कानूनी प्रावधान लागू करके इसे चलाया जा सकता है। जैसे घर से, स्कूल से, कॉलेज से,  दूर क्षेत्र में इसको खोला जा सकता है जहां ऐसे क्षेत्रों में बच्चों को बैन किया जा सके। हर सेक्स वर्कर्स का अपना कार्ड निर्धारित हो। इस तरह से समाज और लोगों के हित को देखते हुए सरकार को सुरक्षित ढंग से कई तरह के कानूनों के साथ इसे वैध घोषित कर सकता है। 

सरकार को कानूनी वैधता के साथ समाज को भी अपना नजरिया बदलना चाहिए हर किसी को हर तरह का रोजगार करने का हक है। भारत में महिलाओं को जितना उच्च श्रेणी में रखा गया है। जितना सम्मान दिया जाता है वैसे ही उनके कामों को भी सम्मान दिया जाना चाहिए क्योंकि महिलाएं अपने साथ-साथ अपने परिवार को भी लेकर चलती हैं। 
 


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