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उभरती हुई नारी शक्ति: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस


भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। महिलाओं के सम्मान पर संस्कृत में 1 श्लोक है। 

"यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमंते देवताः"
अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वही देवता निवास करते हैं। 

किंतु वर्तमान में महिलाओं को पूजना तो दूर उनका पक्ष लेने के लिए भी सोचना पड़ता है। जैसे कि आप सभी जानते हैं प्रति वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इन दिनों महिलाओं को अपने कामों से अवकाश मिलता है, उन्हें फूल भेंट किए जाते हैं, उनके लिए कार्यक्रम आयोजित कराए जाते हैं, उन्हें उपहार देकर सम्मानित किया जाता है। लेकिन क्यों महिलाओं को सिर्फ उसी दिन ही सम्मान दिया जाता है? जब कभी कोई स्त्री संबंधित दिवस आता हो।
बाकी वर्ष भर महिलाओं को कई तरह के चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। खासकर महिलाएं ठीक से रहने, जीने और खाने के लिए संघर्ष करती रही हैं। तमाम बाधाओं के बावजूद महिलाएं सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही हैं। यह सच है कि जीवन का हर क्षेत्र महिलाओं के बिना अधूरा है। जहां यह कहना उचित होगा कि 
तुम हो तो यह घर लगता है 
वरना इस में डर लगता है।

प्रसिद्ध नारीवादी लेखिका जर्मेन ग्रीर का मानना है कि पुरुष अगर आज बदला हुआ नजर आता है तो इसीलिए नहीं कि वह फेमिनिस्ट (नारीवादी) रवैया अख्तियार कर रहा है - वस्तुतः वह आर्थिक दबावों के कारण उदार नजर आ रहा है। और यह सच भी है कि औरत की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता ने पुरुष का जीवन कहीं ज्यादा सहज और आसान बनाया है। वह पुरुष चाहे पिता हो, भाई हो या पति लेकिन विडंबना है कि भारतीय समाज में खासतौर पर पुरुष के लिए महिलाओं की स्थिति स्वीकार कर पाना बहुत ही अपमानजनक हो गया है। परिस्थितियों के विरुद्ध अनेक चुनौतियों से लड़ती अकेली स्त्री के संघर्षों को पुरुष ने अपने पूर्वाग्रहों के कारण और ज्यादा चुनौतीपूर्ण बना लिया है। 

स्त्री का संघर्ष किसी भी मायने में पुरुष के खिलाफ संघर्ष नहीं बल्कि उसके साथ एक बराबर के तौर पर संबंध बनाने का प्रयास है। स्त्री के तमाम संघर्ष पुरुष के खिलाफ ना होकर उन तमाम स्थितियों के खिलाफ है जो उसे कभी शक्ति संपन्न होने ही नहीं देते। जहां उसके सशक्त होने की हर प्रयास का दमन कर दिया जाता है।

वर्तमान महिलाओं की स्थिति की तुलना करें तो कुछ सकारात्मक मूलभूत बदलाव देखने को जरूर मिले हैं। और  पितृसत्तात्मक व्यवस्था की दीवारें भी हिली हैं। उनके शोषण के असहनीय तरीकों में बहुत ही सकारात्मक बदलाव आए हैं। खेलों से लेकर, सेना, राजनीति, मीडिया और फिल्में हर जगह महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। परिवर्तन चाहे सोच में हो या चाहे समाज में एक दिन में नहीं लाया जा सकता, इसे परिवर्तित करने में सदियां लग जाते हैं। शुद्र, दलित, और स्त्रियों के प्रति व्यवहार में आजादी के पहले और उसके बाद की परिस्थितियों में काफी फर्क देखने को मिला है।

स्त्री को मनुष्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई समाज के भीतर रहकर ही लड़नी है। स्त्री को सशक्त बनाने का लक्ष्य उसे एक प्रति पुरुष बनाना नहीं, बल्कि स्त्री और पुरुष के बीच अधिकतम समानता पर टिके एक ऐसे समाज की रचना करना है जहां स्त्री पुरुष से एक दर्जा नीचे रहने के दर्द से स्थाई रूप से मुक्त हो सके।

विश्व महिला दिवस का इतिहास

8 मार्च यानी विश्व महिला दिवस। 
इसके इतिहास के बारे में बहुत से लोग जानते ही होंगे। महिलाओं के इस दिवस के पीछे बहुत लंबा इतिहास रहा है। 19वीं सदी तक आते-आते महिलाओं ने अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता दिखानी शुरू कर दी थी। जैसा की आप सभी ने सोशल मीडिया में देखा और सुना ही होगा कि अपने अधिकारों को लेकर 1908 में 15000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क शहर में अपने लिए मताधिकार, नौकरी में कम घंटे, और वेतन में पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने की मांग की गई थी। इसके बाद यूनाइटेड स्टेट में 28 फरवरी 1909 को पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। महिला दिवस मनाने की योजना में 17 देशों की 100 महिलाओं ने भाग लिया और विश्व महिला दिवस मनाई जाने पर सहमति जताई। 19 मार्च 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, स्वीटरलैंड
 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली बार 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।

विश्व महिला दिवस की खास रंग

इस दिवस को मनाने के लिए कुछ खास रंगों का उपयोग किया जाता है खास रंग बैंगनी, हरा और सफेद हैं।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, यह तीनों रंग वर्ष 1908 में ब्रिटेन की WSPU यानी वीमेंस सोशल एंड पॉलीटिकल यूनियन ने तय किए थे। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अभियान के मुताबिक बैंगनी रंग न्याय और गरिमा का सूचक है, वही हरा रंग को उम्मीद का रंग माना जाता है, जबकि सफेद रंग को शुद्धता का सूचक माना गया है। सामान्यतः इसका अर्थ यह है कि महिलाओं के लिए न्याय उनकी गरिमा, शुद्धता और उम्मीद का प्रतीक है।

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