पहले एक कहावत था कि जिस घर में गौरैया का वास होता है वहां लक्ष्मी जी विराजमान होती हैं। अब तो यह मानों अतीत की बात हो गई है। पहले गौरैया चिड़िया हमारे आसपास दाना खाते और नल के नीचे पानी में पंखों को गिला करते दिख जाते थे। लेकिन अब तो इन चिड़ियों के चहकने की आवाजें भी सुनाई में नहीं आती हैं। खासकर शहरों में इन पक्षियों के झुंड को देखना मुश्किल हो गया है। इसका कारण भी बढ़ती शहरीकरण, रासायनिक प्रदूषण और रेडिएशन के चलते हमारे और आपके बीच इसका अस्तित्व खत्म होते जा रहा है।
यह चिड़िया बेहद खूबसूरत और अपने आसपास के माहौल को अपनी आवाजों से खुशनुमा बना देती है। इनके रहने से लगता है कि हम वाकई में पर्यावरण के करीब आ गए हैं। पिछले कुछ सालों से शहरों में गौरैया की कमी होती नज़र आ रही है और इनकी कम होती संख्या पर चिंता भी किया जा रहा है।
इस गौरैया के अस्तित्व को बचाने के लिए गुजरात के परेश पटेल ने प्रयासों से कृत्रिम घोंसला बनाने लगे हैं। गुजरात के ये पक्षी प्रेमी चाहते हैं कि इन चिड़ियों की आवाज शहरों में फिर से गूंजने लगे। पिछले लगभग 6 सालों में परेश अपने हाथों से ₹50,000 घोंसले बना चुके हैं और इन घोंसलों को लोगों में मुफ्त का बांटते हैं। ताकि लोग अपने घरों में गौरैया जैसी पक्षियों का आशियाना रख सकें।
परेश पटेल का कहना है कि मुझे पतंग उड़ाना बिल्कुल पसंद नहीं है लेकिन कुछ साल पहले मैं पतंग उड़ाने के एक त्यौहार में अपने दोस्त से बात कर रहा था तब मेरे दिमाग में एक विचार आया कि हम उन पक्षियों को तो नहीं बचा पाए जो पतंग की डोर से घायल हो गए या जिंदगी मौत हो गई लेकिन अब हम बाकी पक्षियों का तो ध्यान रख सकते हैं इस विचार के साथ हमने गौरैया के लिए घोंसले बनाने का सोचा।
साथ ही परेश ने यही बताया कि चीन में बहुत साल पहले गौरैया को पूरी तरह खत्म कर दिया गया था क्योंकि उन्हें यह लगता था की गौरैया बहुत अन्न खाते हैं। सभी गौरैया को खत्म कर देने के बाद चीन में सूखा पड़ गया था। वहां कुछ भी नहीं बचा। क्योंकि टिड्डियों ने सभी फसलों को बर्बाद कर दिया था। गौरैया को जिंदा और सलामत रखना हमारे पर्यावरण और कृषि के लिए बहुत जरूरी है।
परेश पटेल जैसे ही पक्षी प्रेमी राकेश खत्री (दिल्ली) और भी कई ऐसे पक्षी प्रेमी हैं जोकि गौरैया के आश्रय के लिए कृत्रिम घोसले बनाते हैं और गौरैया को अपने परिवेश में वापस लौटाने के लिए सभी पक्षी प्रेमी मिलकर काम कर रहे हैं और यह एक अभियान बन चुका है।
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