कहा जाता है कि जो दिखता है वही बिकता है। चाहे वो तुम्हारा कला(कौशल) हो या तुम स्वयं। जैसा दिखाओगे समाज वही देखेगा और जो सुनाओगे वही सुनेगा। वैसा ही दर्पण, कुछ चलचित्र का है। यहां स्पष्ट है कि जो समाज में होता है। वही नाट्य रूपांतरण द्वारा चलचित्र के माध्यम से उसी समाज को दिखाया जाता है। या यूं कह सकते हैं समाज का दर्पण चलचित्र है। लेकिन कहीं ना कहीं चलचित्र का दर्पण भी समाज बन गया है।
कलाकारों का रोजगार
इस मनोरंजन की दुनिया में सब कमर्शियल हो गया है। यहां तक कला से कलाकार भी इस मनोरंजन के चकाचौंध में फंस गए हैं। यहां कोई अपने कला को नहीं स्वयं को प्रदर्शित कर रहा है। अर्थात् स्वयं को कला के माध्यम से नीलाम कर रहा है। इन कलाकारों में महिलाओं की अहम भूमिका है। महिलाएं जिस तरह से चलचित्र में स्वयं को प्रदर्शित करती हैं यही वजह है कि लोग आज अपनी सीमा लांघ रहे हैं। जो दिखाओगे वही देखेंगे और आगे वही देखना भी चाहेंगे। इससे ये कलाकार वापस पीछे मुड़ भी नहीं सकते। क्यों कि लोग इन्हें देखने के लिए टाकीज या सिनेमाघर जाते हैं या मोबाइल में घर बैठे इसका लुप्त उठाते हैं और देखने के लिए पैसे लगते हैं और इन्हीं पैसों से इनका रोजगार चल रहा है। यदि इनकी फिल्में न देखी जाए तो आज इनके कला का कोई मतलब नहीं है। ये अपने रोजगार के लिए स्वयं को किसी भी हद तक ले जाते हैं।
कहानी कामसूत्र की
अब के चलचित्र में कहानी कम, कामसूत्र के कला को जरूर प्रदर्शित किया जा रहा है। अभी ट्रेंड चल रहा है वेब सीरीज का। जिसमें कोई भी कहानी बिना कामसूत्र के पूरी नहीं होती है। या यूं कहें कि खुलेआम पोर्न दिखाया जा रहा है। पोर्न की तरह ही वेब सीरीज भी ट्रेंड में चल रहे हैं। यहां कलाकारों ने कला को कॉमर्शियल बना दिया है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो, आज समाज में ' काम ' के प्रति जो उत्तेजना आईं है उससे बलात्कारों की संख्या बढ़ती जा रही है। जिसमें नाबालिग भी शामिल हैं। वे अर्धनग्न महिलाओं को देख कर कम उम्र में ही बड़े हो जा रहे हैं। उनमें महिलाओं को लेकर कई तरह के प्रश्न उठने लगते हैं।
अगर समाज कि बात करें तो, समाज में ऐसी कई घटनाएं और वैश्या करती महिलाओं का अपना रोजगार है। जिसमें ये कहानी ढूंढकर और मिर्चमसाले लगाकर चलचित्र के माध्यम से समाज में परोसा जा रहा है। यदि कहीं कहानी ना मिले तो इनके पास काल्पनिक कहानियों की कमी नहीं है।
जैसे; सैक्रेड गेम, पांचाली, लस्ट, मस्तराम, चरमसूख, कविता भाभी, डी - कोड, बोएगीरी, गंस एंड थाइज़, माया, देव डी डी, ट्विस्टेड और भी इस तरह की कई वेब सीरीज बनाई जा रही है। जिसमें कामसूत्र की पूरी कला को परोसा गया है। इस तरह की सीरीज को देखने में कोई उम्र पाबंदी नहीं रखी गई है। ऐसे नए - नए ऐप के माध्यम से वेब सीरीज को 14 -15 साल के बच्चे भी देखने में दिलचस्पी ले रहे हैं।
बच्चों पर वेब सीरीज का असर
बच्चे जो देखते हैं वही अनुभव भी करना चाहते हैं। बच्चों में यह खासियत होती है कि वे जो कुछ नया देखते हैं उसे करने की उत्सुकता उनमें बनी रहती है। चाहे वो कोई कार्य हो या फिर मनोरंजन।
जब बच्चे इस तरह की सीरीज देखने लगते है तो उनमें उस चीज को अनुभव करने की जिज्ञासा रहती है। उस अनुभव को पाने के लिए वे कई हदें पार कर देते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है नए - नए एप्लीकेशंस। उदाहरण : ULLU, mx player, ALT, zee 5, netflix और भी कई ऐप आ रहे हैं जिसमें ' काम ' की कला को प्रदर्शित किया गया है ना कि उनकी कला को। हम मोबाइल और इंटरनेट को दोष नहीं दे सकते हैं क्योंकि मोबाइल और इंटरनेट हमें सूचनाएं उपलब्ध करवाती है। नेट से हम अपना सारा काम आसान कर लेते हैं। दोष मोबाइल के ऐप का है। इनमें जो नए ऐप्स आ रहे हैं उनमें इस तरह की सीरिजों का ढेर पड़ा हुआ है। सभी उम्रदराज के लोगों के लिए यह सीरीज उपलब्ध कराई जा रही है। तो ऐसे में पढ़े लिखे लोग और बच्चों के मानसिकता पर क्या असर पड़ेगा?
आज कई पढ़े लिखे लोगों की गिनती, बलात्कारियों को श्रेणी में आने लगी है जैसे; कहीं आई ए एस, तो कहीं डॉक्टर, या फिर कोई नेता और ना जाने कितने पढ़े लिखे लोग इन श्रेणी में आ गए हैं। समाज इस अर्धनग्न सीरीज को देख कर नग्न होने की स्थिति में आ रहा है।
समाज की इस चित्रकला ने अधेड़ बूढ़ों को अपनी उम्र से छोटा और बच्चों को अपनी उम्र से बड़ा बना कर रख दिया है। कहा जाता है हर चीजों की एक समय सीमा होती है। वैसे ही सभी चीजों को जानने और समझने की उम्र और समय होता है लेकिन यहां आज 14 - 15 साल के बच्चे अपनी उम्र से काफी बड़े हो गए हैं।
4 Comments
बहुत मस्त बात कही है तुमने
ReplyDeleteजी शुक्रिया
DeleteAchha likhti ho
ReplyDeleteHan samaj kahi air rukh le Raha hai
ReplyDeleteIf you have any doubts. Let me know.