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पश्चिमी संस्कृति का फेक फेमिनिज्म पर पड़ा गहरा प्रभाव


फेमिनिज्म अर्थात् नारीवाद एक ऐसा शब्द है जो पूरी महिला समाज का बोध कराता है और इसके अंतर्गत 
महिलाओं के अधिकारों का वर्णन स्पष्ट रूप से किया गया है। 

फेमिनिज्म का वास्तविक अर्थ क्या है?
नारीवाद की बातें आए दिन खबरों में बनी रहती है। खासकर फिल्म इंडस्ट्रीज़ में महिलाओं की स्वतंत्रता को लेकर वाद विवाद होते रहते हैं। देखा जाए तो महिलाएं हर उस अधिकार के लिए लड़ती हैं जो पुरुषों के अधिकारों में है। 

आप सभी जानते हैं कि पुरुष और स्त्री में फर्क होता ही है। लेकिन उनके अधिकारों में कोई फर्क नहीं होना चाहिए। घर, ऑफिस, समाज, देश कहीं पर भी लिंग भेद नहीं करना चाहिए। चाहे वो लड़का हो या लड़की दोनों को एक जैसा ही अधिकार मिलना चाहिए। 


कुछ महिलाएं फेमिनिज्म को अलग ही नज़रिए से देखती हैं - 
महिलाएं कभी पुरुषों से आगे जाने की बात नहीं कहती। वो बस पुरुषों के अधिकारों की बराबरी चाहती हैं। और ये अधिकार उनको मिल भी रहा है। महिलाओं के अधिकारों के लिए कई कानून लागू किए गए हैं। जिससे महिलाएं पूरे अधिकार और सम्मान के साथ समाज में सुरक्षित रह सकती हैं। महिलाएं आधुनिक युग में काफी आगे बढ़ गई हैं। 


लेकिन कहा जाता है ना जरूरत से ज्यादा अति भी नुकसानदायक होता है। जहां महिलाओं को सुरक्षित, सम्मान और स्वतंत्रता के साथ रखा जा रहा है। वहीं महिलाएं इसका उतना ही फायदा भी उठा रही हैं। पुरुषों पर झूठे आरोप लगाकर इस तरह से नारीवाद को बढ़ावा दे रही हैं। महिलाएं इतनी स्वतंत्र हो गई है कि उन्हें ही अब समाज से कोई मतलब नहीं रहा है। 

जिन महिलाओं को वाकई में संरक्षण और कानून की जरूरत है उन्हें भी इन फेक फेमिनिस्ट वाली महिलाओं की श्रेणी में गिना जा रहा है। कई महिलाएं ऐसी हैं जो अपने बलबूते मेहनत से आगे बढ़ीं हैं उन्हें फेक फेमिनिस्ट की तरह किसी को उकसाना नहीं पड़ा, अच्छे - अच्छे पदों पर काम कर रही हैं, अपने घरों को भी संभाल रही हैं। 

लेकिन पश्चिमी संस्कृति अपनाने वाली महिलाएं इन पर  अब हावी हो गई है।
जैसे नशे करना, गालियां, अनेक पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाते रहना, इस तरह की विचारों वाली महिलाएं खुद को फेमिनिस्ट मानती हैं। 
जैसे सेलेब्रिटी फेमिनिस्ट स्वरा भास्कर, नेहा धूपिया का नाम पहले आता है। ये सेलेब्रिटी फेमिनिज्म को एक अलग ही नज़रिए से देखती हैं। 

नारीवाद का मतलब पुरुष हो जाना नहीं होता है। इसका सही मायने में मतलब होता है कि स्त्री का स्त्रीत्व बना रहे। उसे वो हर अवसर मिले जो पुरुष को हासिल है। 

लेकिन आज कल तो फेमिनिज्म में नशा, शॉर्ट ड्रेसेस, नाइट आउट, गालियां को ही ट्रेंड में चला रहे हैं। इन्हीं सब चीजों को फेमिनिज्म में बढ़ा - चढ़ा कर दिखाया जा रहा है। 

फेमिनिज्म को दीपिका पादुकोण के एक एड से बढ़ावा मिला। दीपिका  का फेमिनिज्म को लेकर एक एड जारी हुआ  जिसमें दीपिका ने कहा कि sex outside marriage #my choice

' जब तक है जान ' फिल्म में कैटरीना ने एक लाइन कही थी - I want to sleep with men of every nationality before getting married. इसमें कैटरीना एक इंडिपेंडेंट लड़की रहती है और इस तरह का मैसेज देती है। 

यदि यही पुरुष वर्ग कहे तो उन पर उंगलियां उठने लगेंगी कि ये महिलाओं के चरित्र पर कैसे बोल सकते हैं।
 
बात तो ये है कि सेलेब्रिटी फेमिनिस्ट महिलाएं फेमिनिज्म को सेक्स और ड्रग्स से जोड़ती हैं। उन्हें समाज के वास्तविकता का कोई भी अंदाजा नहीं है। उन्हें ये तक नहीं पता कि महिलाएं कैसे संघर्ष कर रही हैं और किस स्थिति से गुजर रही हैं। उन्हें अधिकार चाहिए तो सेक्स करने का और ड्रग्स लेने का। 

यहां समाज की महिलाओं के पास ढंग की 2 साड़ी नहीं है पहनने को, एक एक दिन जीने के लिए संघर्ष करती हैं। शारीरिक हिंसा का शिकार हो रही हैं, यौन उत्पीडन से जूझ रही हैं। लेकिन इन मॉर्डन महिलाओं को पश्चिमी संस्कृति को अपनाने के बाद इन्हें अपने देश और समाज से कोई ताल्लुक ही नहीं है ऐसा लगता है।

National family health survey 2015-16
 
के अनुसार 63 % घरेलू मामले में अपने स्वास्थ्य समस्या पर बात करने तक की आजादी नहीं है। एक तिहाई से ज्यादा  महिलाएं 15 साल की उम्र के बाद शारीरिक हिंसा को झेल रही हैं। 
उनमें एक तिहाई शादीशुदा महिलाएं है। 
14% बिना शादीशुदा वाली लड़कियां यौन हिंसा का शिकार हो रही हैं।
7% अपने ही पतियों द्वारा किए गए यौन हिंसा का शिकार हुई हैं। 


 
फेमिनिज्म शब्द पहली बार कब सुनने में आया?

1920 में पहली बार फेमिनिज्म सुनने में आया। पहली बार अमेरिकन टोबैको कॉर्पोरेेेशन  ने  
 सिगरेट की सेल्स को बढ़ाने लिए फेमिनिज्म का सहारा लिया। Edward bernays ने सिगरेट के सेल्स को बढ़ाने के लिए इस कंपनी ने साइकोलॉजी का यूज करते हुए फेमिनिज्म का मुद्दा उठाया था।

इन्होंने कहा था कि
 'cigarette is symbol of Power'. ये मेल डमिनंस का प्रतीक है। पुरुष डमिनांस को तोड़ने के लिए महिलाओं को भी सिगरेट पीनी चाहिए।  फिर 1920 में ही न्यूयॉर्क इस्ट परेड में जवान लड़कियों को सिगरेट पीते दिखाया गया। 

और मीडिया में ये बात कही गई कि कुछ लड़कियां torch or freedom मतलब आज़ादी की मशाल जलाएंगी। पश्चिमी संस्कृति का ये सिगरेट ट्रेंड अब भारत में भी महिलाओं पर हावी हो गया है। 

भारत की महिलाएं पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा देती हैं। यहां की संस्कृति और यहां की महिलाओं की स्थिति से अंजान बनी हुई हैं। और अपनी इस स्वतंत्रता का गलत फ़ायदा उठती हैं। 

Section 498A dowry law
 इस लॉ का मिसयूज करके बहुत सी महिलाएं अपने पति और ससुराल या अपने किसी और रिश्तेदारों को जेल भेजवा दी हैं। सबसे बड़ी बात और वास्तविकता तो ये है कि पुरुष के आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण परिवार ही होता है। एक रिसर्च में देखा गया कि देश में सबसे ज्यादा आत्महत्या पुरुष ही करते हैं महिलाओं की तुलना में। भारत के दक्षिण क्षेत्र में पुरुष आत्महत्या केस सबसे ज्यादा देखा गया है। 

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